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              एक घर के मोबाइल नम्बर पर “रॉंग नम्बर” से कॉल आई.. घर की एक औरत ने कॉल रिसीव की तो सामने से किसी अनजान शख्स की आवाज़ सुनकर उसने कहा ‘सॉरी रॉंग नम्बर’ और कॉल डिस्कनेक्ट कर दी.. उधर कॉल करने वाले ने जब आवाज़ सुनी तो वो समझ गया कि ये नम्बर किसी लड़की का है, अब तो कॉल करने वाला लगातार रिडाइल करता रहता है पर वो औरत कॉल रिसीव न करती। फिर मैसेज का सिलसिला शुरू हो गया जानू बात करो न!! मोबाइल क्यूँ रिसीव नहीं करती..? एक बार बात कर लो यार! उस औरत की सास बहुत मक्कार और झगड़ालू थी.. इस वाक़ये के अगले दिन जब मोबाइल की रिंग टोन बजी तो सास ने रिसीव कर लिया.. सामने से उस लड़के की आवाज़ सुनकर वो शॉक्ड रह गई, लड़का बार बार कहता रहा कि जानू! मुझसे बात क्यूँ नहीं कर रही, मेरी बात तो सुनो प्लीज़, तुम्हारी आवाज़ ने मुझे पागल कर दिया है, वगैरह वगैरह… सास ने ख़ामोशी से सुनकर मोबाइल बंद कर दिया जब रात को उसका बेटा घर आया तो उसे अकेले में बुलाकर बहू पर बदचलनी और अंजान लड़के से फोन पर बात करने का इलज़ाम लगाया.. पति ने तुरन्त बीवी को बुलाकर बुरी तरह मारना शुरू कर दिया, जब वो उसे बुरी तरह पीट च

निर्भया के बलात्कारीअफ़रोज़ की रिहाई परआक्रोश व्यक्त करती कविता

 Hindi poem

किस भारत पर गौरव कर लूँ,
किस भारत की शान कहूँ?
किस भारत पर सीना ठोकूं?
किसको हिन्दुस्तान कहूँ?

     गंगा के दामन में हमने ख़ूनी नाले छोड़ दिए,
     गीता के अध्यायों में,सब काले पन्ने जोड़ दिए,
     आज खड़ा धरती पर ऊंचे आसमान पर रोता हूँ,
     शर्म लिए आँखों में अपने संविधान पर रोता हूँ,

शर्म करो भारत वालों तुम अपने लिखे विधानों पर,
शर्म करो इन्साफ संभाले इन लंगड़े दीवानो पर,
शर्म करो तुम पंगू होते अपने इन भुजदंडों पर,
शर्म करो लाचार बनाते कानूनी पाखंडों पर,

     तुमने अपराधी को बालिग़ नाबालिग में बाँट लिया,
     चीखों की नीलामी कर दी संविधान को चाट लिया,
     उसको नाबालिग कहते हो, जो वहशत का गोला था,
     अब साली तू मर जिसने ये रॉड डालकर बोला था,

कान फाड़ती चीखों पर भी जो खुलकर मुस्काया था,
जिसके सिर पर भूत हवस का बिना रुके मंडराया था,
वाह अदालत तूने इन्साफों का दर्पण तोड़ दिया,
नर पिशाच को दूध पिलाकर खुल्लम खुल्ला छोड़ दिया,

     अरे! निर्भया की चीखों पर किंचित नही पसीजे तुम,
     नाबालिग था!2  बस उस पर ही रीझे तुम,
     संसद वालों,मौन तुम्हारा,तुम्हे नपुंसक बोलेगा,
     किस दिन का है इंतज़ार? कब खून तुम्हारा खौलेगा?

शायद उस दिन ताला टूटे,संविधान की पेटी का,
जिस दिन जिस्म निचोड़ा जाएगा मंत्री की बेटी का,
उस दिन शायद कानूनों की धारा छेड़ी जायेगी,
किसी सांसद पुत्री के जब रॉड घुसेड़ी जायेगी,

     लेकिन आम आदमी कब तक आंसू रोज बहायेगा,
     और खून कब तलक दामिनी का अफ़रोज़ बहायेगा,
     ये सचिन मिश्रा कहे,इन इंसाफी दरबारों से,
     मत कोई समझौता करिये बेटी के हत्यारों से,

होगा ये अहसान तुम्हारा,
उस अबला की आहों पर,
नंगा करके गोली मारो,
खुलेआम चौराहों पर!

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